तर्क-वितर्क द्वारा प्रकृति को निर्धारित नहीं किया जा सकता। परन्तु जब आप कहते हैं कि निर्देशित संरचना गोल है। तब गोल संरचना की शर्त के मुताबिक उस संरचना का एक केंद्र तथा उसकी परिधि २∏r (परिधि ज्ञात करने का सूत्र) सूत्र से ज्ञात होनी चाहिए। फिर चाहे उस संरचना का आयतन अथवा द्रव्यमान कुछ भी क्यों न हो ?? तात्पर्य हमारे द्वारा विषय सम्बंधित बिन्दुओं की चर्चा का भौतिकी अर्थ निकलना चाहिए।
यदि विषय सम्बंधित बिन्दुओं की चर्चा का भौतिकी अर्थ नहीं निकलता, तब तो आप गप्पें मार रहे हैं। विज्ञान में कई बार ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है। जब वैज्ञानिकों को दो परिस्थितियों में से किसी एक को चुनना पड़ता है। अर्थात किसी एक परिस्थिति को आधार मानना पड़ता है। वास्तव में यह सही-गलत के निर्णय के समय की परिस्थिति नहीं है। बल्कि अध्ययन के लिए आधार निर्धारण की परिस्थिति है। इस परिस्थिति में आधार निर्धारण वैज्ञानिकों की इच्छा के अनुसार नहीं होता। और न ही किसी अन्य आधार की रचना की जा सकती है। बल्कि प्रकृति द्वारा प्रदत्त प्राकृतिक-आधार (भौतिकता) को ही आधार माना जाता है। अर्थात उस प्राकृतिक आधार को चुना जाता है। जिसके प्रयोग से अध्ययन करने में सुविधा हो। और जो आधार सर्वमान्य कह ला सके। यह निर्धारण निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रख कर किया जाता है।
१. उस आधार में सापेक्षीय परिवर्तन न के बराबर हों। क्योंकि इस परिस्थिति में उस आधार के सापेक्ष मापी जाने वाली सभी मापें गलत होंगी।
२. आधार परिवर्तन का कार्यकाल निर्धारित हो।
३. एक लम्बे समयांतराल में ही आधार परिवर्तन हो। ताकि त्रुटी रहित विशुद्ध माप प्राप्त की जा सके।
४. आधार परिवर्तन के कारक हमें ज्ञात हों। ताकि त्रुटी के प्रभाव को भिन्न-भिन्न ज्ञात किया जा सके।
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