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अरबों तारों का एक विशाल निकाय मंदाकिनी (Galaxy) कहलाता है। ब्रह्माण्ड में १०० अरब मंदाकिनियाँ हैं, और प्रत्येक मंदाकिनियों में १०० अरब तारे हैं। यानि कि ब्रह्माण्ड में तारों की कुल संख्या लगभग १० की घाट २२ है। मंदाकिनियों का ९८% भाग तारों से तथा शेष २% भाग गैसों और धूल के कणों से निर्मित है। मंदाकिनियों को आकृति के आधार पर निम्न तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है। पहला सर्पिल आकृति की मंदाकिनियाँ,  दूसरा दीर्घवृत्तीय आकृति की मंदाकिनियाँ और तीसरा अनियमित आकृति की मंदाकिनियाँ। हमारी मंदाकिनी का रंग दूधिया है। फलस्वरूप इसे दुग्धमेखला या आकाशगंगा कहा जाता है। अब तक ज्ञात मंदाकिनियों में 80% सर्पिल मंदाकिनियाँ, 17% दीर्घवृत्तीय मंदाकिनियाँ तथा ३% अनियमित आकृति की मंदाकिनियाँ पाई गईं हैं। आकृति के आधार पर स्पष्ट है कि सर्पिल मंदाकिनी अन्य दूसरी मंदाकिनियों से आकार में बड़ी होती होगी। हमारी आकाशगंगा सर्पिल आकृति की मंदाकिनियों में से एक है और इसके पास की मंदाकिनी का नाम देवयानी है। हमारे सौर-मंडल के समान कई तारों के मंडल जो आकाशगंगा के हिस्से हुआ करते हैं। वे सभी आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा करते हैं।


अवरक्त विस्थापन के आधार पर सन १९२९ में कैलिफोर्निया स्थित माउंट विल्सन वेधशाला में एडविन हब्बल ने ब्रह्माण्ड में होने वाले विस्तार की पुष्टि की। परिक्षण के दौरान एडविन हब्बल ने पाया कि कुछ निकटतम मंदाकिनियों के वर्णक्रमों की अवशोषण रेखाएं वर्णक्रम के लाल छोर की और खिसक रहीं है। अतः इस प्रयोग से दो निष्कर्ष निकाले गए।
  1. सभी मंदाकिनियाँ हमसे दूर जा रही हैं।
  2. कोई मंदाकिनी हमसे जितनी दूरी पर है। वह हमसे उतनी ही तेजी से दूर जा रही है। इस प्रकार मंदाकिनी का वेग मंदाकिनी की हमसे दूरी के समानुपाती होगा। इसे हब्बल का नियम भी कहते हैं।
हब्बल के नियम के अनुसार ही ब्रह्माण्ड की उम्र १५ × १० वर्ष आंकी गई है। साथ ही ब्रह्माण्ड की उम्र की पुष्टि और भी परीक्षणों द्वारा सत्यापित की जा चुकी है।


हब्बल के मंदाकिनियों के प्रतिसरण के नियम पर आइजक ऐसीमोव का कहना था कि हब्बल के नियमानुसार यदि मंदाकिनियों की हमसे दूरी के साथ-साथ मंदाकिनियों में प्रतिसरण की गति भी बढती जाती है। तो एक सीमा के बाद वे मंदाकिनियाँ हमें दिखना बंद हो जाएंगी। यह वह सीमा है जिसके बाद (सीमा से बाहर) की जानकारी हमारी आकाशगंगा दूसरे शब्दों में प्रेक्षक मंदाकिनियों को प्राप्त नहीं हो सकती। वह सीमा हमसे १२५ करोड़ प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। यानि कि प्रकाश को भी उस सीमा तक पहुँचने में १२५ करोड़ वर्ष लग जाएंगे। जबकि प्रकाश का वेग लगभग ३ लाख किलो मीटर प्रति सैकेंड है। 
  1. कहीं ऐसा तो नही कि यही ब्रह्माण्ड की सीमा है ??
  2. इसके बाद भौतिकता का अस्तित्व ही नही ??
  3. या प्रत्येक को जानकारी एकत्रित करने के लिए इतना ही क्षेत्र प्राप्त है अथवा पर्याप्त है ??
  4. कहीं यह दूसरे ब्रह्माण्ड की सीमा की शुरुआत तो नही (ब्रह्माण्ड के समूह की अवधारणा) ?? दूसरे शब्दों में इस सीमा के पश्चात् प्रकृति के अन्य नियम लाघू होतें हैं। जो इस ब्रह्माण्ड के नियमों से पृथक हैं।
अभी भी बहुत से प्रश्न उठते हैं और बहुत से प्रश्न उठना बांकी है। समय के साथ-साथ प्रायोगिक परिणामों की माप में आने वाले परिवर्तन नए प्रश्नों का कारण बनते हैं। विज्ञान यह निश्चित नही कर सकता कि इस सीमा का क्या औचित्य है ?? इस सीमा के होने के एक से अधिक कारण हो सकते हैं और शायद एक भी नही हो सकता। यह विज्ञान की निम्नतर स्थिति है। जहाँ लोगों की अवधारणाएँ और तर्क-वितर्क मुख्यतः वैज्ञानिक कारण ढूंढने और आधार निर्धारित करने में प्रयुक्त किये जाते हैं। किसी एक कारण को उस विशेष परिस्थिति के लिए प्रमाणित किया अथवा माना जाता है। 

अज़ीज़ राय के बारे में

आधारभूत ब्रह्माण्ड, एक ढांचा / तंत्र है। जिसमें आयामिक द्रव्य की रचनाएँ हुईं। इन द्रव्य की इकाइयों द्वारा ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ। आधारभूत ब्रह्माण्ड के जितने हिस्से में भौतिकता के गुण देखने को मिलते हैं। उसे ब्रह्माण्ड कह दिया जाता है। बांकी हिस्से के कारण ही ब्रह्माण्ड में भौतिकता के गुण पाए जाते हैं। वास्तव में आधारभूत ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्ड का गणितीय भौतिक स्वरुप है।
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