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एक बार मुझे एक बहुत-बड़े संत महात्मा जी के प्रवचन सुनने का मौका मिला था। उन्होंने गुरु-शिष्य के सम्बन्ध से अपने प्रवचन की शुरुआत की। प्रवचन को विस्तार देते-देते वे गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में बताने लगे। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण शब्द का संधि विच्छेद "गुरु+तत्व+आकर्षण" के रूप में किया। इस तरह से उन्होंने गुरुत्वाकर्षण बल के अर्थ का अनर्थ कर दिया। प्रवचन के दौरान उन्होंने इशारा करते हुए बताया कि यह जानकारी उन्हें उनके शिष्य जो एक माध्यमिक शाला में विज्ञान विषय के शिक्षक हैं, ने बताई है। (मैं उन संत महात्मा जी का परिचय आपको नहीं दे सकता हूँ क्योंकि वे जिस पदवी को धारण किये हुए हैं वह पदवी सबसे बड़ी पदवी मानी जाती है।)

अर्थ का अनर्थ हमेशा दो तरह के इंसान करते हैं।
1. अधूरा ज्ञान रखने वाला इंसान
2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण न रखने वाला इंसान
अज्ञानी व्यक्ति कभी भी समाज का अहित नहीं कर सकता है और न ही वह अर्थ का अनर्थ करता है। इसलिए एक अज्ञानी पुरुष सदैव विद्वान व्यक्ति के समान स्पष्ट सोच रखता है। इसलिए उनकी जिंदगी औरों की तरह ख़ुशी से गुजरती है।

इसलिए कहा भी जाता है, यदि आपको किसी विषय का अधूरा ज्ञान है तो आप उस विषय के बारे में और अधिक जानकारी जुटाइए। तब तक अधूरा ज्ञान रखने वाले इंसान को उस अधूरे ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए मनाही रहती है। ऐसा करना समाज के लिए हितकारी होता है। (महत्वपूर्ण बिंदु : पूरा ज्ञान जैसी कोई चीज नहीं होती है, इसलिए अधूरा ज्ञान को स्पष्ट करना हमारी जिम्मेदारी बनती है। अधूरे ज्ञान का अर्थ है किसी विषय, वस्तु या घटना के बारे में अधूरी जानकारी रखना, जिसके अभाव में कभी भी उस विषय, वस्तु या घटना के बारे में स्पष्ट होना असंभव होता है।)

ऐसा क्यों है कि विज्ञान से अधिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अधिक महत्व दिया जाता है ? वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की बात की जाती है। क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण का क्षेत्र विज्ञान से कहीं अधिक व्यापक होता है। विज्ञान के किसी क्षेत्र में कार्य करने की अपनी कुछ शर्तें होती हैं। परन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण संगतता के आधार पर फलता-फूलता है। यह हम मनुष्यों के दैनिक जीवन में प्रभाव डालता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण उस प्रकाश के समान है जिसकी अनुपस्थिति में अंधकार रुपी अन्धविश्वास हम मनुष्यों को जकड़ लेता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रत्येक विषय, वस्तु और घटना के बारे में हमारी समझ विकसित करता है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही है जिसके माध्यम से हम न केवल चीजों को परिभाषित करते हैं बल्कि उसके सहयोग से उन चीजों (विषय, वस्तु और घटना) की पहचान करना भी सीखते हैं।

अज़ीज़ राय के बारे में

आधारभूत ब्रह्माण्ड, एक ढांचा / तंत्र है। जिसमें आयामिक द्रव्य की रचनाएँ हुईं। इन द्रव्य की इकाइयों द्वारा ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ। आधारभूत ब्रह्माण्ड के जितने हिस्से में भौतिकता के गुण देखने को मिलते हैं। उसे ब्रह्माण्ड कह दिया जाता है। बांकी हिस्से के कारण ही ब्रह्माण्ड में भौतिकता के गुण पाए जाते हैं। वास्तव में आधारभूत ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्ड का गणितीय भौतिक स्वरुप है।
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