भाषा कभी भी खोज का माध्यम नही होती है। परन्तु खोज की अभिव्यक्ति का माध्यम अवश्य होती है। खोज के प्रचार-प्रसार का माध्यम होती है। इसलिए विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए आवश्यक है "हम ऐसे शब्दों का उपयोग कदापि न करें। जो अस्पष्ट और अपरिभाषित होते हैं।" साथ ही ऐसे शब्दों का उपयोग करना चाहिए, जो हमारे या वैज्ञानिकों के कहने या उनके कार्यों (खोज) के अर्थ को स्पष्ट करते हैं।
गणित न केवल प्रकृति/भौतिकी की भाषा है बल्कि वह विज्ञान की भी भाषा है। जिसके उपयोग से तकनीक विकसित की जाती है। क्योंकि यह भाषा मानव और प्रकृति के बीच संवाद का माध्यम बनती है। प्रकृति के रहस्यों को जानने और उस ज्ञान के उपयोग से तकनीक विकसित करने में हमारी मदद करती है। इसलिए गणित, विज्ञान का एक सहायक विषय भी है। परन्तु भाषा के रूप में गणित हिंदी, अंग्रेजी, स्पेनिस, जर्मन, बंगाली आदि अन्य भाषाओँ से बिलकुल अलग है। क्योंकि इस भाषा का उपयोग सूत्र और समीकरण के रूप में किया जाता है। अर्थात गणित के माध्यम से किसके बारे में चर्चा की जा रही है ? इस बारे में जानना असंभव होता है। दो और दो मिलकर चार हो गए। परन्तु वे पुरुष थे या स्त्री ? जानवर थे या पक्षी ? सजीव थे या निर्जीव ? गणित भाषा में क्या कहा गया है ? यह जानना तब तक असंभव है जब तक सुनने, पढ़ने या देखने वाले को चर्चा का विषय ज्ञात नहीं हो जाता है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि गणित भाषा में कही गई बातें संदिग्ध होती हैं। उनका स्पष्ट अर्थ नहीं निकलता है। बल्कि गणित भाषा में कही गई बातें स्पष्ट और यथार्थ (कुछ परिस्थितियों में नजदीक अर्थ वाली) होती हैं। फलस्वरूप यह भाषा आम लोगों की बोलचाल में नहीं बोली जाती है।
गणित, विज्ञान नहीं है ! क्योंकि यह न ही खोज का माध्यम है और यह न ही खोज की एक विधि है। परन्तु भाषा के रूप में गणित खोज का कारण अवश्य हो सकती है। अर्थात भाषा के रूप में गणित का उपयोग दूसरों की खोज पर प्रश्न चिन्ह लगा सकता है। शंका उत्पन्न कर सकता है। उनकी खोज की गलती या कमी को उजागर कर सकता है। उदाहरण के लिए सर स्टीफेन हाकिंग ने विलक्षण स्थिति के गणितीय मॉडल की कमी द्वारा श्याम विवर (Black Hole) की खोज की थी। परन्तु गणित खोज का माध्यम नहीं हो सकता है। जो लोग गणित को विज्ञान कहते हैं। उसे खोज का साधन मानते हैं। उन्हें इस प्रश्न पर विचार करना चाहिए कि "क्या गणित हमारे प्रश्नों के उत्तर दे सकता है ?" इस प्रश्न का उत्तर है नहीं। यदि गणित हमारे प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम होता। तो गणित अवश्य ही विज्ञान कहलाता। क्योंकि तब गणित खोज का माध्यम/साधन कहलाता। परन्तु गणित कभी भी हमारे प्रश्नों का उत्तर नहीं देता है। वह हमारी समस्याओं को सरल/हल (Solve) करता है। मूर्त को अमूर्त और अमूर्त को मूर्त रूप देने में सहायक होता है। इस प्रकार से गणित भाषा के रूप में हमारी खोज को अभिव्यक्त करता है। वो बात अलग है कि गणित विषय को विज्ञान संकाय के अंतर्गत रखा जाता है। परन्तु गणित न ही विज्ञान है और न ही कला है।
1. गणित का किसी न किसी रूप में निश्चितता और यथार्थता के साथ संबंध होता है। यह यथार्थता हमेशा वैज्ञानिक पद्धति को लेकर होती है।
2. गणित के द्वारा चीजों को परिभाषित किया जाता है। ताकि आंकिक मान और चित्रात्मक रूपों की पहचान समानता और असमानता के आधार पर की जा सके।
3. गणित के द्वारा मूर्त को अमूर्त तथा अमूर्त को मूर्त रूप दिया जा सकता है। इस विशेषता के रहते ज्ञान का तकनीकी उपयोग करना संभव होता है। और इस तरह से सैद्धांतिक प्रकरण का व्यवहारिक प्रकरण के साथ संबंध स्थापित होता है।
गणित के प्रश्नों के हल का वर्गीकरण तीन प्रकार का होता है।
1. जो हल यथार्थ मान के रूप में ज्ञात होता है।
2. जो हल संभावित मान के रूप में ज्ञात होते हैं। इसलिए इन प्रश्नों के हल दो या दो से अधिक मान को लिए हुए होते हैं। जिनमें से कोई एक मान यथार्थ होता है।
3. इन प्रश्नों के हल सदैव यथार्थ मान के नजदीक होते हैं। इसलिए इन प्रश्नों के अनेक हल ज्ञात किये जा सकते हैं। परन्तु इन प्रश्नों की यथार्थता कभी भी ज्ञात नहीं की जा सकती है।
गणित, विज्ञान नहीं है क्यों ?
1. शुरुआत को लेकर किसी भी प्रकार की कोई बाध्यता नहीं होती है। अर्थात गणित वास्तविक दुनिया से अलग काल्पनिक दुनिया के बारे में भी हो सकता है। जबकि विज्ञान में विधि या प्रक्रिया को लेकर भले ही बाध्यता नहीं होती है। परन्तु शुरुआत को लेकर विज्ञान में दो प्रकार की बाध्यता होती है।
2. दिशा को लेकर भी किसी भी प्रकार की कोई बाध्यता नहीं होती है। जबकि विज्ञान में भले ही विधि या प्रक्रिया के चुनाव को लेकर बाध्यता नहीं होती है। परन्तु चुनाव के बाद विज्ञान में दिशा की बाध्यता निर्मित हो जाती है।
3. मूर्त को अमूर्त रूप देने के बाद गणित में आकार को लेकर भी बाध्यता नहीं होती है। इसे सूत्रीकरण कहा जाता है। जबकि विज्ञान में आकार को लेकर हमेशा बाध्यता होती है। उदाहरण : जब हम घटना या भौतिकता का गणितीय निरूपण करते हैं तो उसे समीकरण कहते हैं। इसमें आकार (विशेष मान) को लेकर बाध्यता होती है। यदि विज्ञान में यह बाध्यता नहीं होती तो हमें नई-नई तकनीक विकसित करने की आवश्यकता नहीं होती।
स्ट्रिंग सिद्धांत एक गणितीय अवधारणा है। जो ब्रह्माण्ड के संभावित निदर्श के बारे में दी गई अवधारणा है। जिसकी वास्तविकता अभी खोजा जाना बांकी है। इसे हम कल्पना कह सकते हैं। विज्ञान के पिछले 100 वर्ष के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण पढ़ने को मिलते हैं। जब गणितीय समीकरणों को सिद्धांतों के निष्कर्ष के अनुसार बाद में परिवर्तित किया गया था। क्योंकि गणित का उपयोग भाषा के रूप में वैज्ञानिकों की खोजों को अभिव्यक्त करने में किया जाता रहा है।
गणित न केवल प्रकृति/भौतिकी की भाषा है बल्कि वह विज्ञान की भी भाषा है। जिसके उपयोग से तकनीक विकसित की जाती है। क्योंकि यह भाषा मानव और प्रकृति के बीच संवाद का माध्यम बनती है। प्रकृति के रहस्यों को जानने और उस ज्ञान के उपयोग से तकनीक विकसित करने में हमारी मदद करती है। इसलिए गणित, विज्ञान का एक सहायक विषय भी है। परन्तु भाषा के रूप में गणित हिंदी, अंग्रेजी, स्पेनिस, जर्मन, बंगाली आदि अन्य भाषाओँ से बिलकुल अलग है। क्योंकि इस भाषा का उपयोग सूत्र और समीकरण के रूप में किया जाता है। अर्थात गणित के माध्यम से किसके बारे में चर्चा की जा रही है ? इस बारे में जानना असंभव होता है। दो और दो मिलकर चार हो गए। परन्तु वे पुरुष थे या स्त्री ? जानवर थे या पक्षी ? सजीव थे या निर्जीव ? गणित भाषा में क्या कहा गया है ? यह जानना तब तक असंभव है जब तक सुनने, पढ़ने या देखने वाले को चर्चा का विषय ज्ञात नहीं हो जाता है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि गणित भाषा में कही गई बातें संदिग्ध होती हैं। उनका स्पष्ट अर्थ नहीं निकलता है। बल्कि गणित भाषा में कही गई बातें स्पष्ट और यथार्थ (कुछ परिस्थितियों में नजदीक अर्थ वाली) होती हैं। फलस्वरूप यह भाषा आम लोगों की बोलचाल में नहीं बोली जाती है।
भाषाविदों के द्वारा कहा भी जाता है कि "जो भाषा जितनी अधिक सरल और आम लोगों के द्वारा बोली या लिखी जाती है। उस भाषा में कही गई बातों के उतने ही अधिक अर्थ निकलते हैं।" जिसके कारण उस भाषा में कही गई बातों की संदिग्धता की संभावना बढ़ जाती है। गणित के साथ भी यही हुआ है। इसलिए गणित आम बोलचाल की भाषा नहीं है।
गणित, विज्ञान नहीं है ! क्योंकि यह न ही खोज का माध्यम है और यह न ही खोज की एक विधि है। परन्तु भाषा के रूप में गणित खोज का कारण अवश्य हो सकती है। अर्थात भाषा के रूप में गणित का उपयोग दूसरों की खोज पर प्रश्न चिन्ह लगा सकता है। शंका उत्पन्न कर सकता है। उनकी खोज की गलती या कमी को उजागर कर सकता है। उदाहरण के लिए सर स्टीफेन हाकिंग ने विलक्षण स्थिति के गणितीय मॉडल की कमी द्वारा श्याम विवर (Black Hole) की खोज की थी। परन्तु गणित खोज का माध्यम नहीं हो सकता है। जो लोग गणित को विज्ञान कहते हैं। उसे खोज का साधन मानते हैं। उन्हें इस प्रश्न पर विचार करना चाहिए कि "क्या गणित हमारे प्रश्नों के उत्तर दे सकता है ?" इस प्रश्न का उत्तर है नहीं। यदि गणित हमारे प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम होता। तो गणित अवश्य ही विज्ञान कहलाता। क्योंकि तब गणित खोज का माध्यम/साधन कहलाता। परन्तु गणित कभी भी हमारे प्रश्नों का उत्तर नहीं देता है। वह हमारी समस्याओं को सरल/हल (Solve) करता है। मूर्त को अमूर्त और अमूर्त को मूर्त रूप देने में सहायक होता है। इस प्रकार से गणित भाषा के रूप में हमारी खोज को अभिव्यक्त करता है। वो बात अलग है कि गणित विषय को विज्ञान संकाय के अंतर्गत रखा जाता है। परन्तु गणित न ही विज्ञान है और न ही कला है।
यह सच्चाई है कि कोई भी गणितज्ञ, जब तक वह थोडा-बहुत कवि न हो, एक परिपूर्ण गणितज्ञ कदापि नहीं हो सकता।गणित सहायक विषय के रूप में :
- कार्ल वायरस्ट्रास (1815-97 ई.)
1. गणित का किसी न किसी रूप में निश्चितता और यथार्थता के साथ संबंध होता है। यह यथार्थता हमेशा वैज्ञानिक पद्धति को लेकर होती है।
2. गणित के द्वारा चीजों को परिभाषित किया जाता है। ताकि आंकिक मान और चित्रात्मक रूपों की पहचान समानता और असमानता के आधार पर की जा सके।
3. गणित के द्वारा मूर्त को अमूर्त तथा अमूर्त को मूर्त रूप दिया जा सकता है। इस विशेषता के रहते ज्ञान का तकनीकी उपयोग करना संभव होता है। और इस तरह से सैद्धांतिक प्रकरण का व्यवहारिक प्रकरण के साथ संबंध स्थापित होता है।
गणित के प्रश्नों के हल का वर्गीकरण तीन प्रकार का होता है।
1. जो हल यथार्थ मान के रूप में ज्ञात होता है।
2. जो हल संभावित मान के रूप में ज्ञात होते हैं। इसलिए इन प्रश्नों के हल दो या दो से अधिक मान को लिए हुए होते हैं। जिनमें से कोई एक मान यथार्थ होता है।
3. इन प्रश्नों के हल सदैव यथार्थ मान के नजदीक होते हैं। इसलिए इन प्रश्नों के अनेक हल ज्ञात किये जा सकते हैं। परन्तु इन प्रश्नों की यथार्थता कभी भी ज्ञात नहीं की जा सकती है।
संख्याएँ कभी भी किसी वास्तविक स्थूल वस्तु को नहीं दर्शाती हैं। वे तो बस चिन्ह के रूप में होती हैं, जो चेतना से रहित शून्य में किसी जटिल पहेली के अलग-अलग हो गए टुकड़ों की भाँति तैरती रहती हैं। उनमें से किन-किन (चिन्हों) को एक साथ रखना ज़रूरी है ? यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी समस्याओं की शर्तें क्या मांग कर रही हैं ? उन मांगों की पूर्ति करके समस्याओं की पहेली को एक नया अर्थ दे दिया जाता है। जिससे समस्या का समाधान तो नहीं होता है परन्तु समस्या सरल हो जाती है। समस्या को नए अर्थ के साथ समझना आसान हो जाता है। तत्पश्चात हम प्रतिरूप या प्रतिमान द्वारा परिभाषित कारणों, घटकों या उनके प्रभावों की खोज कर पाते हैं। इस प्रकार गणित विज्ञान को सहायता प्रदान करता है।ज्ञान के यथार्थ को खोजने को विज्ञान कहते हैं। विज्ञान में कल्पनाओं का कोई स्थान नहीं होता है। परन्तु गणित में कल्पनाओं की बहुत बड़ी भूमिका होती है। इन कल्पनाओं के द्वारा वास्तविक दुनिया के रहस्य को उजागर किया जा सकता है। क्योंकि गणित की शुरुआत कहीं से भी "माना" या काल्पनिक तथ्यों के द्वारा भी की जा सकती है। गणित में शुरुआत को लेकर कोई भी बाध्यता नहीं होती है। परन्तु विज्ञान एक पद्धति है इस कारण विज्ञान में ज्ञात ज्ञान (सिद्धांत, नियम, तथ्य या जानकारी) के द्वारा अज्ञात को खोजने का प्रयास किया जाता है। विज्ञान की अपनी कुछ सीमाएं हैं। जिस प्रकार भाषा के द्वारा काल्पनिक और वास्तविक दोनों प्रकार की दुनिया को अभिव्यक्त किया जा सकता है। उसी प्रकार गणित के द्वारा काल्पनिक और वास्तविक दोनों प्रकार की दुनिया की रचना की जा सकती है। परन्तु इन दोनों दुनिया में कहीं भी असंगतता का अस्तित्व देखने को नहीं मिलता है। इसलिए गणित में विज्ञान और कला दोनों के गुण पाए जाते हैं। गणित को सिर्फ विज्ञान या कला कह देना अनुचित है। गणित एक उच्च्स्तरीय भाषा है जिसका उपयोग सही अर्थ के साथ तब हो सकता है। जब चर्चा का विषय कहने और सुनने वाले दोनों को पता होता है।
गणित, विज्ञान नहीं है क्यों ?
1. शुरुआत को लेकर किसी भी प्रकार की कोई बाध्यता नहीं होती है। अर्थात गणित वास्तविक दुनिया से अलग काल्पनिक दुनिया के बारे में भी हो सकता है। जबकि विज्ञान में विधि या प्रक्रिया को लेकर भले ही बाध्यता नहीं होती है। परन्तु शुरुआत को लेकर विज्ञान में दो प्रकार की बाध्यता होती है।
2. दिशा को लेकर भी किसी भी प्रकार की कोई बाध्यता नहीं होती है। जबकि विज्ञान में भले ही विधि या प्रक्रिया के चुनाव को लेकर बाध्यता नहीं होती है। परन्तु चुनाव के बाद विज्ञान में दिशा की बाध्यता निर्मित हो जाती है।
3. मूर्त को अमूर्त रूप देने के बाद गणित में आकार को लेकर भी बाध्यता नहीं होती है। इसे सूत्रीकरण कहा जाता है। जबकि विज्ञान में आकार को लेकर हमेशा बाध्यता होती है। उदाहरण : जब हम घटना या भौतिकता का गणितीय निरूपण करते हैं तो उसे समीकरण कहते हैं। इसमें आकार (विशेष मान) को लेकर बाध्यता होती है। यदि विज्ञान में यह बाध्यता नहीं होती तो हमें नई-नई तकनीक विकसित करने की आवश्यकता नहीं होती।
स्ट्रिंग सिद्धांत एक गणितीय अवधारणा है। जो ब्रह्माण्ड के संभावित निदर्श के बारे में दी गई अवधारणा है। जिसकी वास्तविकता अभी खोजा जाना बांकी है। इसे हम कल्पना कह सकते हैं। विज्ञान के पिछले 100 वर्ष के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण पढ़ने को मिलते हैं। जब गणितीय समीकरणों को सिद्धांतों के निष्कर्ष के अनुसार बाद में परिवर्तित किया गया था। क्योंकि गणित का उपयोग भाषा के रूप में वैज्ञानिकों की खोजों को अभिव्यक्त करने में किया जाता रहा है।
गणित का निम्न रूप से प्रकृति और मनुष्यों द्वारा भाषा के रूप में उपयोग किया जाता है।
- गणित अंकों के निश्चित क्रमों के द्वारा प्रकृति की सुंदरता को गणितीय प्रतिमानों के रूप में अभिव्यक्त करता है। अर्थात भौतिकता के रूपों की सुंदरता को गणित के माध्यम से समझा जाता है। तभी तो कहा गया है कि प्रकृति (Nature) का गणित ही गणित का स्वाभाव (Nature) है। यह गणित का गणना करने का गुण है।
- गतिशील पदार्थों (सामान्य उदाहरण : तूफ़ान) के प्रारब्ध से लेकर के उसकी नियति तथा उसके प्रभाव को निर्धारित करने में गणित का उपयोग किया जाता है। यह गणित का भौतिकीय परिवर्तनों को समझने का गुण है।
- छोटे से छोटे अंतर और परिवर्तन की पहचान करने में गणित का उपयोग किया जाता है। ताकि भविष्य में होने वाले बड़े से बड़े प्रभावों को समझा जा सके। यह गणित का भविष्यवाणी करने का गुण है।
- दूसरे आयामों में भौतिकता के छुपे हुए रूपों की संभावना को व्यक्त करने में गणित का उपयोग किया जाता है। यह गणित का दार्शनिक गुण है। उदाहरण : डूबे ग्लैशियर की यथार्थता को जानने में
- जिन स्थानों में भौतिकता के (किसी एक) रूपों के शक्तिशाली प्रभावों के चलते जाना असंभव होता है। उन स्थानों की वास्तविकता को समझने के लिए गणित का उपयोग किया जाता है। यह गणित का रहस्यवादी गुण है। उदाहरण के लिए सूर्य और श्याम विवर जैसे खगोलीय पिंडों के वातावरण के रहस्य को सुलझाने में गणित का उपयोग किया जाता है।
- उपकरणों की संयोजकता के लिए जाल-तंत्र (Network) की रचना में गणित का उपयोग किया जाता है। यह गणित का सम्बन्ध संयोजक गुण है।
- भौतिकता के एक समान रूपों और घटनाओं की पहचान करने में गणित का उपयोग किया जाता है। यह गणित का विषमता की पहचान करने का गुण है। जो प्रायिकता के द्वारा संभव हो पाता है।
- गणित उपकरणों और मशीनों की पूरी क्रिया प्रणाली को न्यूनतम छति को ध्यान में रखकर के रूप रेखा तैयार करता है। तथा तकनीकी ज्ञान को मूर्त रूप देने में सहयोगी होता है। जिससे कि मशीनें सुचारू रूप से चलायमान हो सकें। यह गणित के यांत्रिकीय गुण के कारण संभव हो पाता है।
- डी.एन.ए. की संरचना को समझने से लेकर के दवाइयों के निर्माण तक गणित का उपयोग किया जाता है। यह गणित का जीवनदायिनी गुण है। गणित भाषा के रूप में न केवल मनुष्यों द्वारा बल्कि प्रकृति के द्वारा भी बोली जाती है। जिसके फलस्वरूप मेरे और आपके शरीर का निर्माण (गुणसूत्रों द्वारा) संभव हो पाया है।
- सुरक्षा की दृष्टी से कूटशब्दों के निर्माण और उसके कूटवाचन में गणित का उपयोग किया जाता है। यह गणित का मशीनी गुण है। जिसके कारण एक संगणक (Computer) सुचारू रूप से कार्य कर पाता है।
- ऊर्जा के संसाधनों का उपयोग तरंगों के माध्यम से ऊर्जा निर्मित करने में और तत्पश्चात उसी ऊर्जा को नियंत्रित करके उसका उपयोग तरंगों के रूप में संचार करने में किया जाता है। यह गणित का व्यवहारिक गुण है।
- यह गणित का सबसे व्यापक और सदाबहार बने रहने का गुण है कि वह सभी जगह किसी न किसी रूप में उपयोगी सिद्ध होता है। कला से लेकर के विज्ञान तक में हमेशा उपयोगी होने वाली यह भाषा प्रत्येक समस्या के समाधान को ढूंढने में मददगार सिद्ध होती है।
विशेष बिंदु : विज्ञान में दो प्रकार की बाध्यता होती है।
- विज्ञान काल्पनिक दुनिया के बारे में नहीं है। पूरा लेख यहाँ से पढ़ें।
- विज्ञान की शुरुआत बिना आधार (ज्ञात ज्ञान) के असंभव है अर्थात आगे चलकर हम उसी ज्ञात ज्ञान की संगतता को खोजते हैं। इस संगतता में संशोधन और विस्तार करना संभव होता है।
अच्छा आलेख।
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर जी
हटाएंबहुत सुंदर और सरल भाषा में आपने गणित और विज्ञान के भेद को स्पष्ट किया। विज्ञान के सभी सिद्धांतों को जबरन गणित के जरिए समझाने की विधि से वह और भी जटिल हो गए है। आम व्यक्ति इसीलिए विज्ञान से दूर जा रहा है। विज्ञान को गणित से अन्य विषयों के माध्यम से भी बेहतर ढंग से समझाया जा सकता है। जैसे की कविता। यदि मैं E=MC2 को कविता के माध्यम से स्पष्ट करूँ तो वह और भी आसान होगा और व्यक्ति को जल्दी समझ में आएगा। प्राचीन काव्य में जैसे की वेदों की ऋचाओं में विज्ञान के कठिन सिद्धांतो को काव्य में ही व्यक्त किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सरल भाषा का उपयोग किया है आपने।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद