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साहित्य लेखन में भले ही प्रकृति की सुंदरता को पेड़-पौधे और जीव-जन्तुओं के रंग-रूप (संरचना) के द्वारा दर्शाया जाता है। सूर्योदय की लालिमा, आसमान का नीलापन, बादलों की सफेदी और रात के समय आकाश में टिमटिमाते तारें सुंदरता का बोध कराते हों। परन्तु विज्ञान में प्रकृति की सुंदरता का आशय "प्रकृति का एक रूप में पाया जाना या एक समान बने रहना" से होता है।

दरअसल सुंदरता का अपना कोई मापदंड नहीं है। और चूँकि व्यक्ति के विचार और उसका लेखन हमें आकर्षित करता है। इसलिए हम विचारों और लेखन को भी प्रतिक्रिया के रूप में सुंदर कह देते हैं। क्योंकि देखा गया है कि तब लेखक और पाठक के विचारों में एक रूपता पाई जाती है। एक लेखक के विचार पाठक को अपने लगने लगते हैं।

प्रकृति की सुंदरता के प्रमुख बिंदु :
1. प्रकृति कोई कर्ता नहीं है। जो भेदभाव करे।
2. प्रकृति को एक व्यवस्था के रूप में जाना जाता है।
3. प्रकृति सूक्ष्म स्तर से लेकर खगोलीय स्तर तक व्यवस्था बनाए रखती है।
4. प्रकृति व्यवहार में समानता का भाव रखती है।
5. प्रकृति निर्णायक भूमिका भी निभाती है। अर्थात बिना आगाह किये दण्ड देना।
6. हम सिद्धांत देने और उसके आधार पर कार्य करने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र हैं। परन्तु (प्रतिक्रिया के रूप में) प्रत्येक सिद्धांत (Theory) की सत्यता का निर्णय प्रकृति के द्वारा किया जाता है।
7. पेड़-पौधे और जीव-जन्तु प्रकृति द्वारा प्रदत्त प्राकृतिक चीजें हैं। अर्थात वे सभी प्रकृति के ही परिणाम हैं। जिससे एक व्यवस्था/प्रणाली का बोध होता है। समय पर सूर्योदय-सूर्यास्त का होना, आग से सभी चीजों का जलना, पानी से आग का बुझना आदि ये प्रकृति है।
ईश्वर ने एक बहुत अच्छा अवसर अपने हाथ से जाने दिया। - सर अल्बर्ट आइंस्टीन (प्रश्न : यदि आपका यह सिद्धांत गलत साबित होता है तो ? के जबाब में) यह भेदभाव के बारे में स्पष्ट समझ विकसित करने वाला एक वक्तव्य है, जो यह दर्शाता है कि आइंस्टीन को प्रकृति पर कितना विश्वास था।
प्रकृति का सौंदर्य : उसकी एक रूपता है।
प्रकृति कभी भी भेदभाव नहीं करती है। यदि प्रकृति भेदभाव करती तो विज्ञान का अस्तित्व ही नहीं होता। हमारे आपसी निष्कर्ष कभी भी मेल नहीं खाते। प्रयोग और परीक्षण विधि को उपयोग में लाना असंभव होता। उसकी सत्यता हमेशा संदेह के घेरे में होती। चिकित्सा पद्धति में रोगों के कारण को पहचानना असंभव होता। तकनीक विकसित करना मनुष्य के वश में नहीं होता। और सबसे बड़ी परमाणु से लेकर खगोलीय पिंडों तक का अस्तित्व ही नहीं होता।
ये जो हम अपने चारों और देखते हैं पेड़-पौधे, जीव-जंतु, तारे, ग्रह, उपग्रह इत्यादि। ये प्रकृति नहीं है !! बल्कि इन सभी के बीच के संतुलन और सामंजस्य को प्रकृति कहते हैं। इस संतुलन और सामंजस्य में सौन्दर्य भी है, सामर्थ्य भी है। यहाँ सौन्दर्य का आशय "जिसे हम खोज के दौरान ज्ञात करते हैं और उसके द्वारा भविष्यवाणियां कर सकते हैं" से होता है। जबकि सामर्थ्य का आशय "उस क्षमता या परिस्थिति से है, जिसके द्वारा प्रकृति द्वारा प्रदत्त अर्थात प्राकृतिक चीजों की रचना होती हैं।" हमारा जन्म भी संतुलन का ही परिणाम है कि हम दिखने में वैसे ही हैं जैसे : हमारे अभिभावक
संयोग किसी भी घटना के लिए बहुत महत्व रखता है। प्रकृति भेदभाव करती है कहकर जो उदाहरण दिया जाता है। वह ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय का है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय पदार्थ और प्रतिपदार्थ समान मात्रा में थे। प्रकृति ने उसे नष्ट करके भेदभाव किया है ! चूँकि प्रतिपदार्थ अभी तक नहीं खोजा गया है। इसलिए प्रकृति के ऊपर भेदभाव का आरोप लगाना गलत है। और दूसरी ओर संभव है कि प्रति-ब्रह्माण्ड भी अस्तित्व रखता हो ! जब इन दोनों का संयोग होगा तब सम्पूर्ण पदार्थ नष्ट होकर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाएगा।

प्रोफेसर हार्डी के अनुसार सुंदरता की निम्न दो शर्तें हैं :

1. कम से कम उपयोगिता।
2. और अधिक से अधिक विचार जगत से सम्बन्ध।

अज़ीज़ राय के बारे में

आधारभूत ब्रह्माण्ड, एक ढांचा / तंत्र है। जिसमें आयामिक द्रव्य की रचनाएँ हुईं। इन द्रव्य की इकाइयों द्वारा ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ। आधारभूत ब्रह्माण्ड के जितने हिस्से में भौतिकता के गुण देखने को मिलते हैं। उसे ब्रह्माण्ड कह दिया जाता है। बांकी हिस्से के कारण ही ब्रह्माण्ड में भौतिकता के गुण पाए जाते हैं। वास्तव में आधारभूत ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्ड का गणितीय भौतिक स्वरुप है।
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