“आधारभूत ब्रह्माण्ड ~ भौतिकता का सीमांत दर्शन” नामक पुस्तक में कुछ इस तरह का कार्य हमारे द्वारा लिखित किया गया है। जिसे, आपके लिए नीचे लिखा जा रहा है। क्योंकि यह एक सैद्धांतिक युक्ति है। जो ब्रह्माण्ड को जानने में हमारी मदद करेगी। आपकी सोच को सैद्धांतिक दिशा देगी। इसलिए इसको जानना आपके लिए आवश्यक है।
पुस्तक में ब्रह्माण्ड के भौतिक स्वरुप का वर्णन किया गया है। कहने का आशय है कि पुस्तक में ब्रह्माण्ड को निर्मित करने वाले अवयवों और घटकों के अस्तित्व को बतलाया गया है। ब्रह्माण्ड का अस्तित्व सदैव से ही चिंतन का विषय रहा है। यह क्यों है ? यह ऐसा ही क्यों है ? मानव जाति के प्रारंभ से ही लोगों ने इस विषय को अधिक महत्व दिया। इन प्रश्नों को लेकर के मानव ने भिन्न-भिन्न अवधारणाएँ और कहानियाँ रचीं। विज्ञान के विकास और विस्तार के साथ ही लोगों की इन धारणाओं में परिवर्तन हुआ। जैसे-जैसे लोगों को यह आभास होते गया कि उनके द्वारा जिन परिस्थितियों का वर्णन प्रारंभ से किया जाता रहा है। उनका अस्तित्व ही नहीं है अर्थात जिस युक्ति से आज तक ब्रह्माण्ड को परिभाषित किया जाता रहा है। वह युक्ति इस ब्रह्माण्ड को परिभाषित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। क्योंकि जिसका वर्णन हम प्रारंभ से करते आ रहे हैं। ब्रह्माण्ड को परिभाषित करने के लिए उन परिस्थितियों का अथवा उनसे जुड़ी हुई शर्तों का होना आवश्यक था। इन कमियों को हमने तब पहचाना। जब हमने परिभाषित अथवा वर्णन करने वाले शब्दों के भौतिकी अर्थ से संबंधित शर्तों को जाना। और पाया कि अब तक ब्रह्माण्ड से संबंधित चर्चाओं में अक्सर असंगत परिस्थितियों का वर्णन भी किया जाता रहा है। इसलिए हमारे द्वारा वर्णन के भौतिकीय अर्थ के साथ-साथ उनकी शर्तों को भी लिखा जाना जरुरी हो गया है। उदाहरण स्वरुप सर अल्बर्ट आइंस्टीन ने गति को परिभाषित करते समय भी संबंधित शर्तों को प्रस्तुत किया था। और उन शर्तों के भौतिक अर्थ को संबोधित किया था। एक तरह से लोगों और विशेषज्ञों की यह कमजोरी हमारी विशेषता बनी है कि हमने ब्रह्माण्ड को विश्लेषित करने वाली सभी संभावनाओं और उनसे जुड़ी हुई शर्तों का अध्ययन किया है। फिर भी पुस्तक में बतलाए गए अध्ययन का संबंध यदि वास्तविकता से नहीं पाया जाता है। और चूँकि इस ब्रह्माण्ड की रचना हमने नहीं की है। तब हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ब्रह्माण्ड के पदार्थ में वह गुण हैं, जिससे हम कमी रहित एक नए आधारभूत ब्रह्माण्ड की रचना कर सकते हैं।
समस्त लेखन का कार्य सैद्धांतिक दृष्टी से पूर्णतः सही है। इस सैद्धांतिक प्रकरण में प्रायोगिक आधारभूत और असैद्धांतिक आधारभूत के महत्व और उनके आपसी उपयोगी संबंध को भी बतलाया गया है।
पुस्तक में ब्रह्माण्ड के भौतिक स्वरुप का वर्णन किया गया है। कहने का आशय है कि पुस्तक में ब्रह्माण्ड को निर्मित करने वाले अवयवों और घटकों के अस्तित्व को बतलाया गया है। ब्रह्माण्ड का अस्तित्व सदैव से ही चिंतन का विषय रहा है। यह क्यों है ? यह ऐसा ही क्यों है ? मानव जाति के प्रारंभ से ही लोगों ने इस विषय को अधिक महत्व दिया। इन प्रश्नों को लेकर के मानव ने भिन्न-भिन्न अवधारणाएँ और कहानियाँ रचीं। विज्ञान के विकास और विस्तार के साथ ही लोगों की इन धारणाओं में परिवर्तन हुआ। जैसे-जैसे लोगों को यह आभास होते गया कि उनके द्वारा जिन परिस्थितियों का वर्णन प्रारंभ से किया जाता रहा है। उनका अस्तित्व ही नहीं है अर्थात जिस युक्ति से आज तक ब्रह्माण्ड को परिभाषित किया जाता रहा है। वह युक्ति इस ब्रह्माण्ड को परिभाषित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। क्योंकि जिसका वर्णन हम प्रारंभ से करते आ रहे हैं। ब्रह्माण्ड को परिभाषित करने के लिए उन परिस्थितियों का अथवा उनसे जुड़ी हुई शर्तों का होना आवश्यक था। इन कमियों को हमने तब पहचाना। जब हमने परिभाषित अथवा वर्णन करने वाले शब्दों के भौतिकी अर्थ से संबंधित शर्तों को जाना। और पाया कि अब तक ब्रह्माण्ड से संबंधित चर्चाओं में अक्सर असंगत परिस्थितियों का वर्णन भी किया जाता रहा है। इसलिए हमारे द्वारा वर्णन के भौतिकीय अर्थ के साथ-साथ उनकी शर्तों को भी लिखा जाना जरुरी हो गया है। उदाहरण स्वरुप सर अल्बर्ट आइंस्टीन ने गति को परिभाषित करते समय भी संबंधित शर्तों को प्रस्तुत किया था। और उन शर्तों के भौतिक अर्थ को संबोधित किया था। एक तरह से लोगों और विशेषज्ञों की यह कमजोरी हमारी विशेषता बनी है कि हमने ब्रह्माण्ड को विश्लेषित करने वाली सभी संभावनाओं और उनसे जुड़ी हुई शर्तों का अध्ययन किया है। फिर भी पुस्तक में बतलाए गए अध्ययन का संबंध यदि वास्तविकता से नहीं पाया जाता है। और चूँकि इस ब्रह्माण्ड की रचना हमने नहीं की है। तब हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ब्रह्माण्ड के पदार्थ में वह गुण हैं, जिससे हम कमी रहित एक नए आधारभूत ब्रह्माण्ड की रचना कर सकते हैं।
समस्त लेखन का कार्य सैद्धांतिक दृष्टी से पूर्णतः सही है। इस सैद्धांतिक प्रकरण में प्रायोगिक आधारभूत और असैद्धांतिक आधारभूत के महत्व और उनके आपसी उपयोगी संबंध को भी बतलाया गया है।