“ब्रह्माण्ड के समूह” के अस्तित्व की चर्चा का विषय बहुत ही रोमांचक और दिलचस्प है। जिसका कारण विषय का संख्याओं पर आधारित होना है। कुछ समय उपरांत यह विषय एक अवधारणा के समान मालूम होता है। क्योंकि बहुत से प्रश्न हमारे मन में ज्यों के त्यों बने रहते हैं। यह प्रश्न ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति होते से ही प्रारंभ हो जाते हैं। कि..
- ब्रह्माण्ड का आकार कितना है ??
- ब्रह्माण्ड की संख्या कितनी है ??
- क्या सभी ब्रह्माण्ड में भिन्न-भिन्न नियम लाघू होते हैं ??
- उन नियमों को कौन लाघू करता है ?? तात्पर्य नियमों के भिन्न-भिन्न होने की क्या वजह है ??
- क्या किसी दैविक शक्ति का अस्तित्व है ?? यदि है तो उनका कार्य क्षेत्र कहाँ तक सीमित है ??
- क्या इन सभी ब्रह्माण्ड में कोई आपसी सम्बन्ध होता है ?? यदि होता है तो किस आधार पर ?? आदि.. आदि..
“ब्रह्माण्ड के समूह” एक व्यावहारिक विषय है। जिसके अंतर्गत विषयों और अवधारणाओं का एकीकरण होता है। इस स्थिति में हमें तय करना होता है कि हम ब्रह्माण्ड को किस तरह से परिभाषित कर रहे हैं। इस तरह यह विज्ञान की सबसे निम्न स्तर की स्थिति होती है। इस स्थिति में ब्रह्माण्ड की व्यापकता को निश्चित करते से ही ज्ञात होता है कि आखिर निर्देशित ब्रह्माण्ड की रचना हुई है या निर्माण..?? निर्देशित ब्रह्माण्ड उत्पन्न हुआ या पैदा हुआ है ??
अंतिम दोनों स्थिति (ब्रह्माण्ड का उत्पन्न अथवा पैदा होना) ब्रह्माण्ड की व्यापकता के क्षेत्र को तुलनात्मक रूप से कम कर देती हैं। इस स्थिति में कुछ नए बिंदु कार्यरत होते हैं।
- विषय का एकीकरण
- अवधारणा का एकीकरण
- शिशु ब्रह्माण्ड
- संख्यात्मक या गुणात्मक विकास
- निर्देशित तंत्रों की संरचना
- समान्तर ब्रह्माण्ड