समस्या के बारे में हमारा यह सोचना पूर्णतः गलत होगा कि जब हम किसी व्यक्ति, वस्तु या विषय को समस्या की दृष्टी से देखेंगे। तब तक वह एक समस्या है, अन्यथा समस्या नही है। सैद्धांतिक रूप से इस दृष्टी से परिभाषित समस्या का समाधान शत प्रतिशत होना संभव है। परन्तु इसे व्यव्हार में लाना थोड़ा मुश्किल होता है। परन्तु समस्या का स्वरुप वास्तविक है। यह किसी व्यक्ति विशेष की दृष्टी पर निर्भर नही करता है। और न ही समस्या को व्यक्ति विशेष की दृष्टी पर आधारित मानना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से वह समस्या किसी न किसी रूप में आपके सामने आ ही जाएगी।
ब्रह्माण्ड में एक समान अवस्था (Uniform) का न होना समस्या के स्वरुप (भौतिकी अर्थ) को दर्शाना है। समस्या को व्यवहारिक विषयों के अंतर्गत पाया जाता है। यह कई रूपों में सामने आती है। समस्या की स्थिति लोगों की अवधारणाओं को एकीकृत करती है। समस्या का सम्बन्ध सिद्धांतों, नियमों या भौतिकता के किसी भी अन्य रूप के होने या न होने से कतई नहीं रहता। समस्या के भौतिकी अर्थ में प्रायोगिक रूप से भी समस्या उपस्थित रहती ही है। शायद महा-संकुचन या ब्रह्माण्ड की विशेष अवस्था के बाद से यह मनुष्य का पीछा छोड़ दे। परन्तु महा-संकुचन जैसी अवस्था तक प्रायोगिक स्थिति (क्योंकि हम उपस्थित नहीं रहेंगे) बचेगी ही नहीं। समस्या का कारण ही समस्या का निदान मालूम होता है।
“आधारभूत ब्रह्माण्ड में समस्या का उतना ही महत्व है। जितना कि ब्रह्माण्ड की अवस्था परिवर्तन के लिए अन्य घटकों की आवश्यकता (या स्वतः निर्मित होतें हैं) का मालूम होना है।”
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