जब हम किसी “प्रायोगिक उपकरण” का ध्यान से अध्ययन करते हैं। तो देखतें है कि चाहे वह किसी भी तरह का संसूचक हो या मापन या गणना करने का यंत्र हो। उन सभी यंत्रो के द्वारा किसी न किसी रूप में ज्ञात सिद्धांतों का पालन किया जाता है। तात्पर्य सभी प्रकार के प्रायोगिक प्रकरण, सैद्धांतिक प्रकरण पर आधारित होते हैं। परन्तु प्रायोगिक प्रकरण में सैद्धांतिक प्रकरण की भूमिका निर्धारित करना इतना आसन नहीं होता। जितना की हम कभी-कभी समझ लेते हैं। इसके लिए हमें अध्ययन से संबंधित सभी घटनाओं और प्रायोगिक सामग्रियों की प्रकृति को जानना होता है। तत्पश्चात हम किसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं।
“प्रायोगिक प्रकरण यह निर्धारित करता है कि यदि हम निर्देशित नियमों का पालन करते हैं। तो एक निश्चित प्रकार के निर्देशित निष्कर्षों को पाएंगे। फिर चाहे स्थिति, समय, प्रेक्षक की मनोदशा या फिर प्रेक्षक ही क्यों न बदल जाए। निष्कर्षों में किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं होगा। न ही संख्यात्मक रूप से और न ही गुणात्मक रूप से.. क्योंकि घटना में अनुपातिक परिवर्तन देखने को मिलते हैं।”
0 Comments