विज्ञान चाहे कितनी भी उन्नति क्यों न करे, यह आशा रखना व्यर्थ है कि हम कभी-न-कभी अतीत में भी यात्रा कर पाएँगे। यदि ऐसा संभव होगा, तो हमें मजबूरन स्वीकार करना होगा कि सैद्धांतिक रूप से पूर्णतः असंगत परिस्थितियाँ भी संभव हैं।
- लेव लांदाऊ (नोबल पुरुस्कार विजेता) और यूरी रुमेर द्वारा लिखित पुस्तक से

तब विज्ञान का एक नया दौर शुरू होगा। तब शब्दों को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता होगी। इसका अर्थ यह कदाचित नहीं होता कि हम पहले से ही गलत थे। विज्ञान पहले सक्षम नहीं था। परन्तु अब होते जा रहा है। ऐसा सोचना भी गलत होगा। बल्कि तब हमें उन असंगत परिस्थितियों के बारे में पुनः सोचना होगा। उनके अस्तित्व को खोजने के लिए पुनः प्रयास करने होंगे। तब भी ब्रह्माण्ड का स्वरुप परिवर्तित नहीं होगा। परन्तु प्रकृति नए तरीके से कार्यरत होगी। जैसा कि हम सभी अचानक मौसम परिवर्तन के समय देखतें हैं।
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