सैद्धांतिक प्रकरण और प्रायोगिक प्रकरण का आपसी गहरा सम्बन्ध है। क्योंकि सैद्धांतिक प्रकरण, प्रायोगिक प्रकरण को सत्यापित करता है। और वहीँ प्रायोगिक प्रकरण, सैद्धांतिक प्रकरण को प्रमाणित करता है। आइये जानते हैं कि यह संबंध कैसे स्थापित होता है। प्रयोगों के किस चरण में सैद्धांतिक प्रकरण की उपयोगिता होती है। और सिद्धांत के सत्यापन हेतू किस चरण में प्रयोगों की आवश्यकता होती है। हम यह कैसे निर्धारित करते हैं कि प्रयोग में किसी भी प्रकार की गलती नहीं हुई ?? अथवा प्रयोग के सत्यापन की पुष्टि हुई है ??
इसके लिए हमें जानना होता है कि सैद्धांतिक प्रकरण का उस प्रयोग से क्या संबंध है। प्रयोग होने के उपरांत सत्यापन की पुष्टि अथवा निष्कर्ष हेतू, प्रयोगों में उन शर्तों का अस्तित्व होना अति-आवश्यक होता है। जो प्रयोग के सत्यापन के लिए आवश्यक थीं। प्रयोगों के सत्यापन में उन शर्तों को आधार बनाया जाता है। जिसका भौतिकीय अर्थ प्रयोग के सत्यापन की पुष्टि करता है। इस तरह से सैद्धांतिक प्रकरण की भूमिका प्रयोगों में महत्वपूर्ण होती है। और वहीँ किसी सिद्धांत की पुष्टि में प्रयोग तब महत्वपूर्ण होता है। जब गणितीय नियमों द्वारा उस सिद्धांत की शर्तों की जाँच पूर्ण हो जाती है। यह जाँच ब्रह्माण्ड में उस सिद्धांत की शर्तों के अस्तित्व के लिए होती है। जिसके प्रमाण के लिए हमने प्रयोग किए थे। शर्तों की जाँच हेतू गणितीय नियमों का पालन होना जरुरी होता है। क्योंकि प्रयोगों में उपयोग में लाए जाने वाले उपकरणों का निर्माण और मापन की प्रक्रिया सैद्धांतिक रूप से गणितीय होती है। इस प्रकार सैद्धांतिक प्रकरण का प्रायोगिक प्रकरण के साथ गहरा सम्बन्ध होता है।
फिर भी गणितीय नियम, प्रकृति के नियम नहीं हैं।
0 Comments