ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को लेकर भिन्न-भिन्न मान्यताएँ हैं। इन सभी मान्यताओं में भिन्नता का कारण ब्रह्माण्ड की सीमा है। ब्रह्माण्ड की सीमा लोगों की अवधारणाओं को पृथक करती है। सीमा अर्थात किसी अन्य ब्रह्माण्ड की परिकल्पना करना। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति पर दिया गया सबसे अधिक मान्यता प्राप्त सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत है। यह सिद्धांत उस समय प्रतिपादित किया गया जब खगोल वैज्ञानिकों ने विकसित टेलिस्कोप तथा अन्य वैज्ञानिक साधनों द्वारा प्रेक्षणों के आधार पर यह बताया कि हमारा ब्रह्माण्ड विस्तार कर रहा है। यह सिद्धांत बेल्जियम के खगोल शास्त्री एवं पादरी जार्ज लेमेतेर ने दिया। इस सिद्धांत के अनुसार अरबों साल पहले हमारा ब्रह्माण्ड घनीभूत अवस्था में एक बिंदु के समान था। जिसे विलक्षणता का बिंदु कहा गया। इस बिंदु में अचानक महाविस्फोट हुआ। फलस्वरूप ब्रह्माण्ड का विस्तार होना प्रारंभ हो गया। महाविस्फोट ने अतिसघन पिंडों को छिन्न-भिन्न कर दिया। एक सेकेंड के कई गुने छोटे हिस्से के समयांतराल में ही फोटोन और लेप्तोक्वार्क ग्लुआन अन्तरिक्ष में दूर-दूर तक छिटक गए। इसी समयांतराल में परमाणु ने अपना आकार ले लिया था। महाविस्फोट के खरबों वर्ष बाद तक अत्यधिक ताप रहा। ताप में कमी के साथ ही आकाशगंगाएँ बनी। जो आज भी एक दूसरे से दूर जा रहीं हैं। यही बिग बेंग सिद्धांत है।
हर्मन बांडी, थॉमस गोल्ड, एवं फ्रेड हॉयल नामक ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने बिग बेंग सिद्धांत को चुनौती दे डाली। आप तीनों ने मिलकर स्थायी अवस्था सिद्धांत दिया। इस सिद्धांत में कहा गया कि ब्रह्माण्ड का न तो महाविस्फोट के साथ आरंभ हुआ और न ही इसका अन्त होगा। अर्थात इस विशाल ब्रह्माण्ड का न आदि है और न ही अन्त है। इस सिद्धांत के अनुसार आकाशगंगाएँ आपस में दूर तो होती जाती हैं। परन्तु उनका आकाशीय घनत्व अपरिवर्तित रहता है। तात्पर्य दूर होती हुई आकाशगंगाओं के मध्य नई आकाशगंगाएं बनती रहती हैं। इसलिए ब्रह्माण्ड के पदार्थ का घनत्व एक दम स्थिर बना रहता है।
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