लोगों से अक्सर सुनने में आता है कि "नियम, तोड़ने (टूटने) के लिए ही बनाए (बनते) जाते हैं।" हाँ, यह तथ्य बिल्कुल सही है कि अधीनस्थ नियमों के स्थान पर ही दूसरे नियम बनाए अथवा लागू हो सकते हैं। परन्तु दोनों तथ्यों के अर्थ में फ़र्क है। वो इसलिए कि जो लोग इस बात को जानते हैं कि अधीनस्थ नियमों के स्थान पर ही दूसरे नियम बनाए अथवा लागू हो सकते हैं। वे पूर्णतः नियम अर्थात उसकी शर्तों से परिचित होते हैं। जबकि इसके विपरीत जो लोग "नियम, तोड़ने के लिए ही बनाए जाते हैं।" की सोच रखते हैं। वे इस बात से अनजान रहते हैं कि नियम, आखिर किसे कहते हैं ?? नियमों की उत्पत्ति की परिस्थितियाँ कौन-कौन सी हैं ?? नियम और सिद्धांत में क्या भिन्नता है ?? उसके पहचान की शर्तें कौन-कौन सी हैं ?? आदि- आदि..
वास्तविकता यह है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पूर्व में निर्धारित कुछ विशिष्ट नियमों की देन नही है। नियमों की उत्पत्ति भी ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के साथ ही साथ हुई। नियमों के कुछ विशेष गुणधर्म हैं। जो यह तय करने में सार्थक सिद्ध होते हैं कि चर्चित तथ्य नियमों से सम्बंधित है या फिर सिद्धांतों से.. निश्चित क्रम, उसकी पुनरावृत्ति, और निरंतरता जैसे गुण नियमों की पहचान है। इसलिए लोगों को यह भ्रम हो जाता है कि नियम तोड़ने के लिए ही बनाए गए हैं। वास्तव में नियम टूटते नही हैं। वे बदले जाते हैं, वे परिवर्तित होते हैं। नियम ही भौतिकता का आधार बनते हैं। चाहे चर्चा प्राकृतिक नियमों की हो रही हो या व्यावहारिक नियमों की हो रही हो। नियम, सदैव और सर्वत्र लागू रहते हैं। चाहे वे किसी भी रूप में ही क्यों न हों। उनकी पहचान और नियमों की शर्तें एक समान रहती हैं।
शक्ति के प्रयोग से नियमों को परिवर्तित किया जा सकता है। फिर भी ये नियम उस संरचना पर भी लागू होते हैं। जिसके पास नियमों को परिवर्तित करने की शक्ति होती है। ("द ग्रैंड डिजाईन" पुस्तक से साभार)
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