गणित संबंधी हमारे पिछले लेख में हमने देखा था कि किस प्रकार से गणित और मैथ्स की उत्पत्ति और उत्पत्ति के समय उसके मायनों में आपसी भिन्नता थी। परन्तु ज्ञान के वैश्वीकरण होने के साथ ही गणित को संयोजित करके एक स्वरुप दे दिया गया। गणित, हिंदी शब्दकोष का और मैथ्स, अंग्रेजी शब्दकोष का शब्द है। यानि की गणित का अंग्रेजी अनुवाद मैथ्स और मैथ्स का हिंदी अनुवाद गणित है। और इस प्रकार से गणित का क्षेत्र और भी व्यापक हो गया।
पहले हमें यह जानना चाहिए कि गणित क्या है ! यानि की गणित की रचना हुई है ! या गणित का निर्माण हुआ है ! या गणित की उत्पत्ति हुई है ! या फिर गणित किसी अन्य का अंग है दूसरे शब्दों में पैदा हुआ है ! हम चारों परिस्थितियों पर निष्पक्ष चर्चा करेंगे। आंगे चलकर देखते हैं कि क्या निष्कर्ष निकलता है ?
ज्ञान के वैश्वीकरण के साथ ही साथ हमने अंक गणित, रेखा गणित और बीज गणित आदि के द्वारा गणित का निर्माण किया है। इस प्रकार हमने गणित को एक नया स्वरुप दिया है। १ से ९ तक के अंकों को स्वीकार करके हमने गणित की रचना की है। यदि हम गणित को तार्किक विषय मानते हैं तो गणित की उत्पत्ति हुई है। गणित की उत्पत्ति का आशय भौतिकी की उत्पत्ति और उसकी संगत परिस्थितियों के साथ से है। और यदि हम गणित को सहयोगी विषय मानते हैं तो गणित, विज्ञान का अंग है। अर्थात गणित, विज्ञान से पैदा हुआ है। इसलिए वह भौतिकी की भाषा बोलता है। दूसरे शब्दों में कहें तो गणित, विज्ञान की एक भाषा है।
अभी तक की चर्चा से यह निष्कर्ष निकलता है कि गणित के स्वरुप में रचना और निर्माण दोनों की बराबर की हिस्सेदारी है। यह हिस्सेदारी मनुष्यों द्वारा प्रदान की गई है। अब बात आती है गणित के तार्किक विषय होने की… जब हम कहते हैं कि गणित की उत्पत्ति हुई है। तो क्या भौतिकी अथवा ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से पहले गणित का कोई अर्थ था ! या फिर भौतिकी की उत्पत्ति के बाद से गणित का अर्थ निकलना शुरू हुआ है ! मैं तो कहूँगा कि भौतिकी की उत्पत्ति के बाद ही गणित का कोई अर्थ होगा। तात्पर्य गणित की उत्पत्ति या गणित के पैदा होने में एक निष्कर्ष उभयनिष्ट प्राप्त होता है कि गणित, विज्ञान आधारित विषय है। यदि हम गणित को तार्किक विषय मानते हैं तो हमें अवलोकन की आवश्यकता होती है। यानि की एक बाह्य कारक की आवश्यकता पड़ती है। जो कि स्वाभाविक रूप से अपना प्रभाव तार्किक विषय पर डालेगा। और जब हम गणित को एक भाषा मानते हैं। तब हमें किसी भी बाह्य कारक की आवश्यकता नहीं पड़ती। यदि हम उस भाषा को जानते हैं। तो लिख और बोल सकते हैं। जरुरत पड़ने पर समझ सकते हैं।
तो गणित किस प्रकार की भाषा है ! गणित, वह भाषा है जिसका एक और केवल एक ही भौतिकीय अर्थ निकलता है। यानि की कहने वाले की बात को शत प्रतिशत मूल अर्थ के साथ समझा जा सकता है। जैसा की किसी अन्य भाषा में नहीं होता। चूँकि गणित की व्यापकता वैश्वीकरण के साथ ही बढ़ गई है। इसलिए गणित में आत्म-चिंतन (मैथ्स) और व्यावहारिकता (गणित) दोनों के गुण समाहित हैं। आत्म-चिंतन द्वारा हम यह निर्धारित करते हैं कि कौन-कौन सी परिस्थितियाँ ज्ञात भौतिकी में असंगत हैं। यानि की इन परिस्थितियों का अस्तित्व संभव नहीं हो सकता। और व्यावहारिकता द्वारा हम संगत परिस्थितयों की प्रकृति से अवगत होते हैं। यानि की भौतिकता के रूपों का आपसी व्यवहार कैसा और किस रूप में होता है को गणित द्वारा जाना जाता है। इस प्रकार गणित, सकारात्मक और नकारात्मक दोनों सोचों का संयोजित ज्ञान है। सही-गलत का निर्णायक है। तथा एक तार्किक विषय (अवलोकन की सहायता से) है।
टीप : यदि हम गणित को तार्किक विषय कहते हैं यानि की उसके केवल आत्म-चिंतन वाले हिस्से को सम्पूर्ण गणित मान रहे हैं। अर्थात गणित को अपेक्षाकृत कम आंक रहे हैं। और यदि गणित को भाषा का दर्ज देते हैं। यानि की हम सम्पूर्ण गणित अर्थात उसके स्वरुप से परिचित हैं।
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