ब्रह्माण्ड को कई तरह से परिभाषित किया जा सकता है। कुछ लोग ब्रह्माण्ड को अवस्था के आधार पर परिभाषित करते हैं तो कुछ लोग उसे कारक के रूप में परिभाषित करते हैं। चूँकि ब्रह्माण्ड मंदाकिनियों, तारों, ग्रहों, उपग्रहों और आकाशीय पिंडों से मिलकर बना हुआ है इसलिए इसे ब्रह्माण्ड की परिभाषा के रूप में स्वीकारा जाता है। कुछ लोग "हमारा ब्रह्माण्ड" कहकर एक नई संकल्पना को जन्म देते हैं। तो क्या अब ब्रह्माण्ड की परिभाषा बदल जाएगी ! तो क्या इसके पहले तक हम ब्रह्माण्ड को गलत तरीके से परिभाषित कर रहे थे ? आइए, ब्रह्माण्ड को परिभाषित करने से पूर्व हम कुछ और बातों को भी जानें।
घटक : किसी भौतिक संरचना के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली सामग्री घटक कहलाती है। याद रहे घटक के लिए यह जरुरी नहीं होता है कि वह उस भौतिक संरचना में अपनी मौजूदगी दर्शाए। अर्थात घटक बाह्य कारक भी हो सकते हैं। अवयव : प्रत्येक भौतिक संरचना अपने अवयवी भौतिकता के रूपों में विखंडित होती है। अर्थात अवयव, उस भौतिक संरचना के आंतरिक भौतिकता के रूप होते हैं। घटक और अवयव में बुनियादी भिन्नता यह है कि जरुरी नहीं कि घटक, उस भौतिक संरचना में अपनी मौजूदगी दर्शाए, जबकि अवयव के लिए यह जरुरी होता है कि वह भौतिक संरचना में अपनी मौजूदगी दर्शाए। और दूसरा प्रमुख अंतर यह है कि घटक को निर्माण की सामग्री के रूप में और अवयव को विखंडन से प्राप्त सामग्री के रूप में परिभाषित किया जाता है। यदि हम थोड़ा गौर करें, तो हम यह पाते हैं कि अवयव भौतिक संरचना की अवस्था को दर्शाते हैं जबकि घटक उस मूल तत्व के रूप होते हैं जिससे भौतिक संरचना का निर्माण होता है।
अब आप ब्रह्माण्ड को किस तरह से परिभाषित करना पसंद करेंगे। ताकि ब्रह्माण्ड की व्यापकता भी बनी रही और संकल्पनाओं के साथ उसका अर्थ भी परिवर्तित न हो। लोगों को ब्रह्माण्ड को परिभाषित करने में कठनाई इसलिए भी आती है क्योंकि ब्रह्माण्ड सीमित है या असीम, ब्रह्माण्ड परिवर्तनशील है या उसमें परिवर्तन होता है को समझने में मुश्किल होती है। घटकों के संयुक्त रूप को ब्रह्माण्ड कहते हैं। मूल रूप से ब्रह्माण्ड दो घटकों द्रव्य और ऊर्जा से मिलकर बना है। प्रारम्भ में दी गई परिभाषा अवस्था आधारित परिभाषा है। क्योंकि ब्रह्माण्ड उस अवस्था से भी गुजरा है। जब ब्रह्माण्ड अस्तित्व में तो आ गया था। परन्तु न तो कोई तारा था और न ही कोई ग्रह था। इस परिभाषा से एक चीज और स्पष्ट हो जाती है कि ब्रह्माण्ड के अंत के बाद भी ये घटक मौजूद रहते हैं जैसे कि ऊर्जा.. और जैसा की हम सभी जानते भी हैं कि ऊर्जा संरक्षण के नियमानुसार ऊर्जा न तो नष्ट होती है और न ही निर्मित होती है। ऊर्जा केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है।
अभी तक हमने केवल ब्रह्माण्ड को परिभाषित किया है और जाना है कि ब्रह्माण्ड अपने दो मूल घटक ऊर्जा और द्रव्य से मिलकर बना है। मंदाकिनियां, तारे, ग्रह, उपग्रह और आकाशीय पिंड ब्रह्माण्ड के अवयव हैं। और ब्रह्माण्ड के अवयवों की सूची में अणु, परमाणु और उनके अवयवी कण भी सम्म्लित हैं। परन्तु आधारभूत ब्रह्माण्ड के चार मूल घटक हैं। पहला : पदार्थ, दूसरा : ऊर्जा, तीसरा : स्थिति और चौथा : भौतिक राशियाँ ये चारों मूल घटक हमेशा से विधमान हैं और ब्रह्माण्ड के अंत के बाद तक विधमान रहते हैं। आधारभूत ब्रह्माण्ड का पहला और दूसरा घटक सैद्धांतिक और तीसरा और चौथा घटक व्यावहारिक होता है। आप किसी भी वस्तु, व्यक्ति या पिंड की ओर इशारा करते हुए यह तो कह सकते हो कि यह ब्रह्माण्ड है। परन्तु यह कदापि नहीं कह सकते हो कि यही ब्रह्माण्ड है ! ऐसा करने से ब्रह्माण्ड अपनी व्यापकता खो देता है।
घटक : किसी भौतिक संरचना के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली सामग्री घटक कहलाती है। याद रहे घटक के लिए यह जरुरी नहीं होता है कि वह उस भौतिक संरचना में अपनी मौजूदगी दर्शाए। अर्थात घटक बाह्य कारक भी हो सकते हैं। अवयव : प्रत्येक भौतिक संरचना अपने अवयवी भौतिकता के रूपों में विखंडित होती है। अर्थात अवयव, उस भौतिक संरचना के आंतरिक भौतिकता के रूप होते हैं। घटक और अवयव में बुनियादी भिन्नता यह है कि जरुरी नहीं कि घटक, उस भौतिक संरचना में अपनी मौजूदगी दर्शाए, जबकि अवयव के लिए यह जरुरी होता है कि वह भौतिक संरचना में अपनी मौजूदगी दर्शाए। और दूसरा प्रमुख अंतर यह है कि घटक को निर्माण की सामग्री के रूप में और अवयव को विखंडन से प्राप्त सामग्री के रूप में परिभाषित किया जाता है। यदि हम थोड़ा गौर करें, तो हम यह पाते हैं कि अवयव भौतिक संरचना की अवस्था को दर्शाते हैं जबकि घटक उस मूल तत्व के रूप होते हैं जिससे भौतिक संरचना का निर्माण होता है।
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