विशेषज्ञ अर्थात जो किसी विषय का जानकार हो। विषय अर्थात जिस पर चर्चा होती है या की जा सकती है। अतः ईश्वर एक विषय नहीं है, परन्तु विज्ञान के लिए ईश्वर का अस्तित्व एक विषय है। जबकि महान व्यक्ति अपने आप में एक विशेषज्ञ होता है। फिर चाहे वह किसी विषय का जानकार हो चाहे न हो। ऐसा कैसे हो सकता है ? तो आखिर वह महान कैसे हुआ ? बताता हूँ जरा ठहरो, विशेषज्ञ अपने पास विषय की सही और गलत दोनों तरह की जानकारी रखता है। वह लोगों को उनकी गलतियों से अवगत कराता है। फलस्वरूप जनसामान्य और वे शोधार्थी विशेषज्ञों का अनुसरण करने लगते हैं जो जानकारी एकत्रित करना चाहते हैं। परन्तु महान व्यक्ति अपने आप में विशेषज्ञ इसलिए होता है क्योंकि वह उस कारण की खोज करता है जिसके कारण जनसामान्य गलत जानकारियों और तथ्यों को सही मान लेते हैं। इस "कारण की खोज" की प्रमाणिकता के लिए वह ऐसे प्रयोग कर बैठता है, जिससे कि समाज में भ्रांतियों और गलफहमी में कमी आती है। दरअसल वह महान व्यक्ति इस विषय का जानकार होता है कि आखिर गलतियाँ कहाँ जन्म लेती हैं ? वे कब उत्पन्न होती हैं ? उसकी उत्पत्ति में कौन-कौन से घटक कार्यरत होते हैं ? चूँकि इस विषय में कम ही चर्चा होती है। फलस्वरूप इन विषयों के जानकार महान कहलाते हैं।
स्वाभाविक रूप से विशेषज्ञों का अनुसरण किया जाता है। परन्तु महान व्यक्ति के अनुयायी हों, यह जरुरी नहीं है। क्योंकि महान व्यक्तियों का कार्य रचनात्मकता की श्रेणी में आता है। वे कारणों की तलाश में होते हैं। उनकी प्रमाणिकता के लिए जोश में वे उन प्रयोगों को कर बैठते हैं। जो सामाजिक होते हैं। जिनसे समाज का समय-समय में उत्थान होता है। इसलिए महान पुरुष सामाजिक होते हैं। परन्तु एक विशेषज्ञ सामाजिक व्यक्ति हो यह जरुरी नहीं है। एक विशेषज्ञ जनसामान्य को उसकी गलती से परिचित कराता है। वह उसकी गलती को सिर्फ सुधारता है कि यह गलत है और यह सही है। परन्तु महान व्यक्ति उन गलतियों की तह तक जाकर उस गलती के कारण को उस व्यक्ति से अवगत कराते हैं। जिसने गलती की थी। ताकि दोबारा गलती की सम्भावना कम हो जाए। फलस्वरूप एक विशेषज्ञ के साथ जनसामान्य सहजता महसूस नहीं करता। क्योंकि जनसामान्य से गलती कब हो जाए और तपाक से वह विशेषज्ञ कब टोक दे। कुछ कहा नहीं जा सकता। परन्तु महान व्यक्तियों के बीच में जनसामान्य सहजता महसूस करता है। क्योंकि वह जनसामान्य को टोकता नही है। वह समाज में सुधार के प्रयास करता है। वह जानता है कि समाज की कमी को कैसे दूर किया जा सकता है। इन सब गुणों के बाद भी एक विशेषज्ञ जनसामान्य से कुछ अपेक्षाएँ रखता है। जो सार्थक भी हैं। परन्तु महान व्यक्तित्व जनसामान्य से किसी भी तरह की अपेक्षाएँ नहीं रखता। क्योंकि वह जानता है कि वह उन्हें कुछ नहीं दे रहा है। वह सुधार नहीं विकास चाहता है। उसने यह सब लोगों के लिए नहीं किया है बल्कि स्वयं के लिए किया है। अपनी ख़ुशी के लिए किया है। क्योंकि वह रचनात्मक कार्य है। और जो अपेक्षाएँ विशेषज्ञ अपने लिए करता है वह उस महान व्यक्तित्व लिए, है भी नहीं...
महान व्यक्तित्व कभी भी न गरीब, अनपढ़, बेसहारा, बेसमझ जैसे लोगों का नेता बनता है और न ही बनना पसंद करता हैं। वह अमीर, शिक्षित, उपकारी, समझदार जैसे लोगों का नेता होता है और अपने आप को उनका नेता कहलवाना पसंद करता है। क्योंकि वह समाज में विकास देखना चाहता है। जिसके लिए वह जी तोड़ मेहनत करता है। - अज़ीज़ रायनोट : एक महान व्यक्तित्व इसलिए भी लोगों से किसी भी तरह (अनुयायी सहित) की अपेक्षा नहीं रखता है क्योंकि वह जानता है। कि यदि वे लोग उस जानकारी से पहले से परिचित होंगे तो उसके द्वारा जानकारी देने का कोई अर्थ नहीं रह जाता। और यदि लोग समझने में सक्षम नहीं हैं तो उसके समझाने के कोई मायने नहीं रह जाते। वह तो मात्र उस समय की पूर्ति कर रहा होता है। जिसे समझने या जानने के लिए लोगों को समय खर्च करना होगा। इसलिए महान व्यक्तित्व की यह समझ उसे खुशियों से भर देती है। वह जो कुछ भी करता है ख़ुशी से करता है। और जिसमें उसे ख़ुशी नहीं मिलती है उसमें वह ख़ुशी ढूंढ लेता है।
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