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विज्ञान... विज्ञान... विज्ञान...
मैं तो तंग आ गया हूँ। ये सुन-सुन के कि हमारा धर्म वैज्ञानिक है ! तो कोई कहता है कि हमारी सभ्यता वैज्ञानिक थी ! हाँ, किसकी सभ्यता अधिक वैज्ञानिक थी इस पर चर्चा जरूर हो सकती है ? यहाँ तक तो ठीक था क्योंकि ये सभी लोग किसी न किसी रूप में किसी एक धर्म या सभ्यता को वैज्ञानिक ठहराने पर बल दे रहे थे। अरे भैया, कुछ तो ऐसे भी मिले जो अपनी-अपनी पेले जा रहे हैं। मुझे तो ऐसा लगा कि मानो उनके घर में चूल्हे की आग (भोजन तैयारी के लिए) इन्ही चर्चाओं की वजह से जल पाती है। बेचारे, यदि वे इस चर्चा (आग) को आगे न चलाएं (जलने दे) तो उनके घर पर भोजन ही न बने। और मुझे ये देखकर यकीन नहीं हुआ कि ये वही लोग थे, जो दावा करने वाले के सामने केवल इतना ही कह पाते हैं कि ये विज्ञान नहीं है। और इतना भी है कि बचपन में इनके घर वालों ने और इनके स्कूलों में ये सब बताया भी होगा कि विज्ञान क्या है ? अच्छाई क्या है ? पर इन्हे तो बस पास होना आता है। इन्होने तो बस याद कर लिया था उदाहरणों को...  कि ये और ये विज्ञान है और ये और ये अच्छाई है। बांकी सब हम नहीं जानते, बस ये और ये विज्ञान है और ये और ये अच्छाई है। इनके सामने यदि कुछ पटक (खोजा गया नया सिद्धांत, नियम, तथ्य या फिर तकनीक) दिया जाए। तो भैया जी लोग बता ही नहीं पाते हैं कि आखिर ये विज्ञान क्यों नहीं है ? क्योंकि इनको तो बस इतना ही आता है कि "ये और ये विज्ञान है।" बेचारे, देखो कितने सीधरे हैं। जो आता है सिर्फ उतने के लिए ही चर्चा करते हैं। बांकी औरों की तरह पेलम-पाली नहीं करते ! बेचारे :-) हाँ, इन लोगों से बस चार लोगों को टैग करवा लो। और अपने जैसे लोगों को इकट्ठे करके दूसरों की मज़ा उड़वा लो। अब इनके लिए और कौन सी दिक्कत बची ! भोजन की...। वो तो चर्चा करने पर ही बन पता है न और बन भी तो रहा है।


ऐसा नहीं है कि ये लोग जिन दावों का खंडन करते हैं। उसमें वे कभी सफल नहीं हो पाते। कई बार इनका प्रयास सफल होता है। क्योंकि दावा ठोकने वाले के पास पर्याप्त प्रमाण/साक्ष्य नहीं होते हैं। अब आप पूछेंगे कि तो इसका क्या मतलब निकाला जाए कि खंडन करने वाले का तरीका (वैज्ञानिक आधार पर) गलत है या फिर दावा करने वाला सही है। मैं तो कहूँगा कि खंडन करने वाले से ज्यादा अच्छा दावा करने वाला है। क्योंकि खंडन करने वाला जिस "कूटकरण सिद्धांत" का उपयोग करता है वह यही नहीं जानता कि "कूटकरण सिद्धांत" आखिर कहता क्या है ! उसकी वह सफलता उसकी सफलता नहीं है। वह तो दावा करने वाले की हार का परिणाम है।

दरअसल दिक्कत इस बात है कि विज्ञान को जानने वालों में जिन गुणों का विकास स्वतः होता है। उनमें से एक भी गुण इनमें दिखाई नहीं देते हैं। अब हम कैसे मान लें कि ये विज्ञान के जानकार हैं। बताओ भला... इनमें से कुछ लोग भौतिक विज्ञान (भौतिकी) को ही विज्ञान मान लेते हैं। तो कुछ लोग तथ्यों (जैसे की पृथ्वी गोल है) को ही विज्ञान समझ बैठते हैं। अब कौन समझाए इन लोगों को कि विज्ञान का दायरा भौतिकी से भी बढ़कर है क्योंकि विज्ञान के उपयोग से ही तकनीकी का जन्म होता है।

अब इनमें से ही कुछ लोग इतने सीधरे बनने की कोशिश करते हैं। और सामने वाले को चूतिया समझकर कहते हैं कि देखो भाई, हम तुम्हारी तरह आँख मूँद (बंद) कर काम करने वालों में से नहीं हैं और न ही उसे स्वीकारते हैं। हओ भैया मान लिया कि तुम आँख मूँद कर काम नहीं करते और न ही उसे स्वीकारते हो। अब तुरंत मैं जो प्रश्न दिमाग में आ रहा है उसे ही पूंछ लेता हूँ। और यहाँ तक कि आप उसका उपयोग भी करते हैं। तो फिर बताओ कि मीडियम (Medium) याने की "माध्यम" और साथ ही उसे "मध्यम" भी कहते हैं। दोनों के अपने अलग-अलग मतलब होते हैं। तो दोनों में क्या सिर्फ छोटा "अ" और बड़ा "आ" का ही अकेला अंतर है। या इसके पीछे भी कोई विज्ञान छुपा है। और हाँ, हिंदी में "माध्यम" के भी दो मतलब निकलते हैं। उदाहरण के तौर पर पहले का मतलब पानी और हवा से है। और दूसरे का मतलब "जरिया" अर्थात साधन के रूप में "मध्यस्तता" से है। अब ये मत बोलना कि ये थोड़ी न विज्ञान का प्रश्न है ? :-)

क्या नहीं पता... अच्छा ये विज्ञान का प्रश्न नहीं है ? तो फिर भैया इतना ही बता दो कि आखिर विज्ञान क्या है ? और हाँ, अब विज्ञान की परिभाषा देने (रटी हुई) मत बैठ जाना।

अज़ीज़ राय के बारे में

आधारभूत ब्रह्माण्ड, एक ढांचा / तंत्र है। जिसमें आयामिक द्रव्य की रचनाएँ हुईं। इन द्रव्य की इकाइयों द्वारा ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ। आधारभूत ब्रह्माण्ड के जितने हिस्से में भौतिकता के गुण देखने को मिलते हैं। उसे ब्रह्माण्ड कह दिया जाता है। बांकी हिस्से के कारण ही ब्रह्माण्ड में भौतिकता के गुण पाए जाते हैं। वास्तव में आधारभूत ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्ड का गणितीय भौतिक स्वरुप है।
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