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"समय" पर मेरी द्वारा लिखी गई कविता

मैं गरीब हूँ।
तू अमीर है।
मेरा यह आलाप है।
बस समय का आभाव है।
समय की अपनी मांग है।
समय ही द्रव्यमान है।

सबका अपना रोना है।
सबकी अपनी चाल है।
सबकी अपनी नियति
जो बल लगाए बदल जाती।
समय ही बलवान है।
समय ही द्रव्यमान है।

तेरा दावा है
कि तू विराम है।
यह भ्रम है।
सब गतिमान हैं।
समय की अपनी मांग है।
समय ही द्रव्यमान है।

न निरपेक्ष गति है।
न निरपेक्ष धरातल है।
प्रकाश की अपनी सीमित गति
निरपेक्ष ही बेईमान है।
समय की अपनी मांग है।
समय ही द्रव्यमान है।


न भूतकाल होता है।
न भविष्यकाल होता है।
यह पहले ऐसा था।
संभवतः यह अब ऐसा होगा।
समय की न कोई चाल है।
समय ही द्रव्यमान है।

तीन रूप होते समय के
तीन अवस्थाएँ होती हैं।
क्षण, अवधि, आयु परिभाषित
भूत, भविष्य सब भ्रम है।
समय की यह पहचान है।
समय ही द्रव्यमान है।

समय कारण भी है।
समय घटक भी है।
समय नियतांक भी है।
समय ही काल का प्रभाग है।
समय की अपनी मांग है।
समय ही द्रव्यमान है।

किसी क्षण संयोग होता।
घटना की अपनी अवधि होती।
पदार्थ कई रूपों में अस्तित्व रखता।
प्रेक्षक बदलते परिणाम बदलता।
अंतराल का मायाजाल है।
समय ही द्रव्यमान है।

समय नियमित है।
बारंबार समयांतराल
समय से पदार्थ है।
अंतरिक्ष से अंतराल
ऊर्जा से आवर्तकाल है।
समय ही द्रव्यमान है।

समय की अपनी मांग है।
समय ही द्रव्यमान है।                                                                                                            - अज़ीज़ राय

अज़ीज़ राय के बारे में

आधारभूत ब्रह्माण्ड, एक ढांचा / तंत्र है। जिसमें आयामिक द्रव्य की रचनाएँ हुईं। इन द्रव्य की इकाइयों द्वारा ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ। आधारभूत ब्रह्माण्ड के जितने हिस्से में भौतिकता के गुण देखने को मिलते हैं। उसे ब्रह्माण्ड कह दिया जाता है। बांकी हिस्से के कारण ही ब्रह्माण्ड में भौतिकता के गुण पाए जाते हैं। वास्तव में आधारभूत ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्ड का गणितीय भौतिक स्वरुप है।
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