हम भारतीय प्रत्येक वर्ष "रमन प्रभाव" की खोज की याद में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाते हैं। "रमन प्रभाव" की खोज भारत रत्न सर चंद्रशेखर वेंकट रमन (7 नवंबर 1888 – 21 नवंबर 1970) द्वारा 28 फ़रवरी 1928 को पूर्ण हुई थी। आप विज्ञान क्षेत्र के पहले एशियाई और भारतीय भौतिकविद थे, जिनको सन 1930 में नोबल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था। आप नोबेल पुरुस्कार प्राप्त करने वाले (ब्रिटिश भारत के) दूसरे भारतीय तथा भारत रत्न से सम्मानित प्रारंभिक तीन रत्नों (महान विभूतियों) में एक रत्न थे। जिनका शोधकार्य मुख्य रूप से "परमाणु भौतिकी" और "विद्युतचुंबकत्व" विषय पर आधारित था। आप प्रो. विक्रम अम्बालाल साराभाई जी जैसे महान वैज्ञानिकों के मार्ग प्रदर्शक रहे हैं। आपके कार्यों ने देश को विज्ञान के क्षेत्र में सदैव एक नई दिशा, लक्ष्य और प्रोत्साहन देने का कार्य किया है। इसी कड़ी में इस वर्ष (2016) के राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की चर्चा का विषय "देश के विकास के लिए वैज्ञानिक मुद्दों को सार्वजनिक प्रोत्साहन देने का उद्देश्य" रखा गया है।
हम, मानव जाति के सदस्य, विज्ञान को एक (खोजपूर्ण, ज्ञानवर्धक, निर्णायक और भविष्य निर्माणक)
विषय के रूप में विकसित करने के लिए, विज्ञान का पद्धति
तथा तकनीकी ज्ञान के रूप में उपयोग करते हैं।
विज्ञान का उपयोग : समस्त मानव जाति के हित में हो यह सुनिश्चित करने,
वैकल्पिक युक्तियों और साधनों की खोज और उनके नि:संकोच उपयोग के लिए
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उत्प्रेरित शिक्षा की व्यवस्था
तथा आपसी समझ विकसित करने और समस्याओं के समाधान के लिए
तुलनात्मक मापदंडों समानता-असमानता और
सामान्य-असामान्य (परिस्थिति वाले कारणों, घटनाओं और उनके प्रभावों) को परिभाषित करने,
वैज्ञानिक पद्धतियों और मापन की प्रक्रियाओं से प्राप्त होने वाले ज्ञान को तब स्वीकार करते हैं,
जब वह ज्ञान स्वतंत्र रूप से एक से अधिक विधियों में निहित
और प्रयोगात्मक कार्यों द्वारा प्रमाणित होता है।
हम समस्त मानव जाति के विकास के लिए ज्ञान के यथार्थ को जानने, उसे आपस में साझा करने
तथा प्रतिकूल प्रभाव रहित प्रायोगिक कार्यों द्वारा,
विश्वस्तरीय वैज्ञानिक समाज बनाने का दृढ़ संकल्प करते हैं।
विषय के रूप में विकसित करने के लिए, विज्ञान का पद्धति
तथा तकनीकी ज्ञान के रूप में उपयोग करते हैं।
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वैकल्पिक युक्तियों और साधनों की खोज और उनके नि:संकोच उपयोग के लिए
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उत्प्रेरित शिक्षा की व्यवस्था
तथा आपसी समझ विकसित करने और समस्याओं के समाधान के लिए
तुलनात्मक मापदंडों समानता-असमानता और
सामान्य-असामान्य (परिस्थिति वाले कारणों, घटनाओं और उनके प्रभावों) को परिभाषित करने,
वैज्ञानिक पद्धतियों और मापन की प्रक्रियाओं से प्राप्त होने वाले ज्ञान को तब स्वीकार करते हैं,
जब वह ज्ञान स्वतंत्र रूप से एक से अधिक विधियों में निहित
और प्रयोगात्मक कार्यों द्वारा प्रमाणित होता है।
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