अक्सर देखा गया है कि जब कभी मनुष्य अपनी बात को प्रमाणित करने में असमर्थ होता है। तब वह एक नई अवधारणा को जन्म दे देता है, अर्थात विषय के दायरे को और अधिक बड़ा देता है। जबकि कुछ समय पूर्व तक उस विषय का दायरा आपेक्षित रूप से कम था। विषय के दायरे की वृद्धि विषय को पुनः परिभाषित करने के लिए विवश कर देती है। इस प्रक्रिया का सबसे अधिक प्रभाव भौतिकी में देखने को मिलता है। क्योंकि भौतिकी एक आधारभूत विषय है।
हमारा प्रयास है कि हम सैद्धांतिक रूप से ब्रह्माण्ड की सभी संभावित परिस्थितियों का अवलोकन करें। उन सभी संभावित परिस्थितियों की शर्तों को जानें। और साथ में यह भी जानने की कोशिश करें कि क्या सभी संभावित परिस्थितियों में ऐसा कोई उभयनिष्ट बिंदु है, जो सभी भिन्न-भिन्न परिस्थितियों को बांधकर रखता है ?? क्या सभी संभावित परिस्थितियों का भौतिकी अर्थ एक समान होता है ?? यदि नहीं तो हमारा उन सभी संभावित परिस्थितियों से क्या लेना-देना है ?? इतना सब जानने से पहले हमें जानना होगा कि किन-किन युक्तियों के द्वारा ब्रह्माण्ड की भिन्न-भिन्न संभावित परिस्थितियों को जाना जा सकता है। इस तरह की रूप रेखा को तैयार करने का प्रमुख कारण सैद्धांतिक प्रकरण का हमारे द्वारा विस्तार करना है। सैद्धांतिक प्रकरण मनुष्य के लिए यह तय करने में सार्थक सिद्ध होता है कि हमारे लिए क्या सस्ता, सुन्दर, टिकाऊ और प्रभावी होगा ?? हमें निर्देशित प्रणाली के लिए किन-किन चीजों की आवश्यकता होगी ?? और निर्देशित प्रणाली का अंतिम निष्कर्ष क्या होगा ?? यह एक तरह से उन सभी निर्धारित बिन्दुओं को जानने का प्रयास है। जो प्रायोगिक प्रकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन सब जानकारी के आभाव में हम बिना प्रयोग के ब्रह्माण्ड के तथ्यों को प्रमाणित नहीं कर सकते हैं। इसलिए यह जरुरी हो जाता है कि हम तथ्यों के विश्लेषण के साथ ही प्रयोगों की भी रूपरेखा तैयार करते चलें।
ब्रह्माण्ड, समय, भौतिकता, अस्तित्व, उत्पत्ति, ऊर्जा, शक्ति, गति, अवस्था, सापेक्षता, पदार्थ, अनंत, प्रायिकता जैसे मूलभूत शब्दों को हमारे द्वारा पुनः परिभाषित करने का प्रयास है। यदि साफ़ शब्दों में कहूँ तो यह कार्य हमारे द्वारा सैद्धांतिक विज्ञान को संकलित और उसे पुनः परिभाषित करने का एक प्रयास है।
हमारा प्रयास है कि हम सैद्धांतिक रूप से ब्रह्माण्ड की सभी संभावित परिस्थितियों का अवलोकन करें। उन सभी संभावित परिस्थितियों की शर्तों को जानें। और साथ में यह भी जानने की कोशिश करें कि क्या सभी संभावित परिस्थितियों में ऐसा कोई उभयनिष्ट बिंदु है, जो सभी भिन्न-भिन्न परिस्थितियों को बांधकर रखता है ?? क्या सभी संभावित परिस्थितियों का भौतिकी अर्थ एक समान होता है ?? यदि नहीं तो हमारा उन सभी संभावित परिस्थितियों से क्या लेना-देना है ?? इतना सब जानने से पहले हमें जानना होगा कि किन-किन युक्तियों के द्वारा ब्रह्माण्ड की भिन्न-भिन्न संभावित परिस्थितियों को जाना जा सकता है। इस तरह की रूप रेखा को तैयार करने का प्रमुख कारण सैद्धांतिक प्रकरण का हमारे द्वारा विस्तार करना है। सैद्धांतिक प्रकरण मनुष्य के लिए यह तय करने में सार्थक सिद्ध होता है कि हमारे लिए क्या सस्ता, सुन्दर, टिकाऊ और प्रभावी होगा ?? हमें निर्देशित प्रणाली के लिए किन-किन चीजों की आवश्यकता होगी ?? और निर्देशित प्रणाली का अंतिम निष्कर्ष क्या होगा ?? यह एक तरह से उन सभी निर्धारित बिन्दुओं को जानने का प्रयास है। जो प्रायोगिक प्रकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन सब जानकारी के आभाव में हम बिना प्रयोग के ब्रह्माण्ड के तथ्यों को प्रमाणित नहीं कर सकते हैं। इसलिए यह जरुरी हो जाता है कि हम तथ्यों के विश्लेषण के साथ ही प्रयोगों की भी रूपरेखा तैयार करते चलें।
ब्रह्माण्ड, समय, भौतिकता, अस्तित्व, उत्पत्ति, ऊर्जा, शक्ति, गति, अवस्था, सापेक्षता, पदार्थ, अनंत, प्रायिकता जैसे मूलभूत शब्दों को हमारे द्वारा पुनः परिभाषित करने का प्रयास है। यदि साफ़ शब्दों में कहूँ तो यह कार्य हमारे द्वारा सैद्धांतिक विज्ञान को संकलित और उसे पुनः परिभाषित करने का एक प्रयास है।